पूर्वांचल में हिंदू विरोधी दंगों के मास्टर माइंड माफिया मुख्तार अंसारी के आतंक को चुनौती देने के लिए गोरक्ष पीठ के तत्कालीन उत्तराधिकारी (अब पीठाधीश्वर और यूपी के मुख्यमंत्री) योगी आदित्य ने अपने कुछ विश्वसनीय लोगों के साथ गोरखपुर से कूच किया।मगर पुलिस प्रशासन ने योगी आदित्यनाथ के काफिले को दोहरीघाट पर ही रोक लिया और वापस जाने के लिए विवश कर दिया। मुख्तार अंसारी को यह बात पता चली तो उसने अपने बर्बर दस्ते को योगी आदित्यनाथ के खात्मे के लिए भेजा। योगी आदित्यनाथ को हमले की आशंका थी, इसलिए उन्होंने मुख्तार के मुखबिरों को गच्चा देते हुए अपनी गाड़ी बदल ली।
मुख्तार के गुर्गों ने योगी आदित्यनाथ के काफिले पर भंयकर हमला किया। इस हमले में लगभग दो दर्जन लोग घायल हुए थे। योगी आदित्यनाथ गाड़ी बदल लिए जाने की वजह से सुरक्षित बच कर वापस गोरक्षपीठ तो पहुंच गए, मगर हिंदुओं में मुख्तार का आतंक और बढ़ गया। हालांकि इसके साथ एक बात और पूर्वांचल के हिंदुओं के मन में गहराई तक बैठ गई कि मुख्तार के आतंक से अगर कोई मुक्ति दिला सकता है तो गोरक्षपीठ ही हो सकती है।
बहरहाल, यह किस्सा सुनाने की दो वजह हैं वो यह कि एक तो गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ, (मुख्यमंत्री) का जानी दुश्मन अब खत्म हो चुका है। दूसरी वजह यह कि जिन हिंदुओं पर आतंक बरपा कर मुख्तार अपनी समानांतर सत्ता चलाता था उन्हीं हिंदुओं ने उसके पुरखों की कब्र खोदी और अब मुख्तार के पुश्तैनी कब्रिस्तान में मुख्तार की कब्र भी तीन हिंदुओं ने ही खोदी है।
माफिया मुख्तार अंसारी को सुपुर्दे-ए खाक करने के लिए उसके घर से करीब 400 मीटर दूर पुस्तैनी कब्रिस्तान में कब्र खोदी गई, जो साढे़ सात फीट लंबी और पांच फीट गहरी और 4 फीट चौड़ी है।
इस कब्रिस्तान में अब तक मुख्तार के परिवार से पिता सुबहानल्ला अंसारी और मां की कब्र अगल-बगल है, जबकि उनके पूर्वजों की कब्रें हैं। मुख्तार अंसारी की कब्र तीन हिंदू मजदूर राम नगीना, संजय और गिरधारी ने खोदी है। इसी कब्र में मुख्तार अंसारी को सुपुर्दे खाक किया गया।
मुख्तार अंसारी भले ही पुलिस, सरकार और लोगों की नजर में आईएसआई-191 गैंग सरगना और माफिया था। रॉबिन हुड उन लोगों के लिए जो उसकी सच्चाई नहीं जानते हैं।अगर यह सच है गरीब हो या अमीर पुलिस वाला हो या नेता मुख्तार ने सबकी की मदद की यहां तक कि घनघोर दुश्मन के गांव-घर और गुट के लोग मदद मांगने आए तो उनकी भी उसी शिद्दत से मदद की जितनी अपने जां निसार लोगों की करता था, मगर वो समय आने पर मदद की कीमत जरूर वसूलता था। किसी को मुखबिर बनाकर या किसी को मुजाहिद बनाकर।मुख्तार को ‘ना’ पसंद नहीं थी। अगर मुख्तार के प्यार भरे पैगाम को किसी ने नकारा तो गोली पड़ना तय था। मुख्तार ने अपने हाथों से बहुत कम लोगों को मारा। जिन लोगों को मारा उसमें एक नाम अजय राय का है। मगर मुख्तार के खिलाफ सबूत नहीं। गवाह मुकर गए, भाग गए या मारे गए। सबूत इनका भी नहीं है।
मुख्तार अंसारी रॉबिनहुड तो था और रहेगा भी मगर मुसलमानों के लिए। मुख्तार की तुलना उसके नाना और दादा से करना बेईमानी है। वो आम के बगीचे में बबूल था। अपने पैगामों में मुख्तार कहता था कि ‘हमें पंडित जी लोगों, भाऊ साहबों या भूमिहारों से कोई दुश्मनी नहीं है। कुछ परिवारों से है। जिंदा रहना है और राजनीति करनी है तो कुछ तो करना पड़ता ही है।’