ट्रंप-टैरिफ-मोदी और ऑपरेशन सिंदूर

ऑपरेशन सिंदूर को अमल में लाने का कारण तो पहलगाम आतंकी हमला नजर आता है, लेकिन पहलगाम आतंकी हमला क्यों हुआ?
ऊपर से दिखाई देता है कि पाकिस्तानी आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने इमरान खान के मसलह के चलते अपनी गिरती हुई साख को बचाने और पाकिस्तानियों में खत्म हो रहे फौज के खौफ को बरकरार रखने के लिए पहलगाम हमला करवाया। इसलिए आसिम मुनीर न केवल पालतू आतंकियों को उकसा रहा था बल्कि आतंकियों को हथियार-पैसा-ट्रैनिंग लॉजिस्टिक भी मुहैया करवा रहा था।

आसिम मनीर अच्छी तरह से जानता था कि भारत सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के दौरान बहुत बुरी मार लगा चुका है, अबकी बार तो उससे ज्यादा खतरनाक वाली मार मारेगा। फिर भी उसने पहलगाम कराने की हिम्मत कैसे की।

सवाल बार-बार उठता है कि दाल-आटे को तरस रहे पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने पहलगाम क्यों किया और किसकी शह पर किया? क्या हमला करवाने वालों को नहीं पता था कि भारत केवल पाकिस्तानी आतंकियों को ही नेस्तनाबूद नहीं करेगा बल्कि उनको पालने वालों को भी मिट्टी में मिला देगा।

जवाब है, पाकिस्तान ने अमेरिका के कहने पर जी हां ट्रंप के कहने पर पहलगाम में आतंकी हमला करवाया और ट्रंप को वास्तव में नहीं मालूम था कि भारत की सैन्य शक्ति कितनी प्रबल हो चुकी है।

समय भी वो रखा जब कोई सोच भी न पाए कि इस हमले के पीछे अमेरिका हो सकता है?

समय था अमेरिका के उप राष्ट्रपति जेडी वैंस की भारत यात्रा। जेडी वैंस को ट्रंप ने भेजा था एफ ३५ खरीद पर भारत के दस्तखत लेने के लिए। भारत ने जेडी वैंस की खूब आव-भगत की लेकिन एफ ३५ की खरीद पर दस्तखत नहीं किए।

बताया जाता है कि जैसे ही वैंस ने ट्रंप को बताया कि भारत एफ ३५ किसी कीमत पर नहीं खरीदेगा वैसे ही ट्रंप आग बवूला हो गए। ट्रंप ने जेडी वैंस की वापसी का इंतजार भी नहीं किया और आसिम मुनीर को इशारा कर दिया कि भारत पर हमला करवा दो।

ट्रंप, मुनीर के कंधे पर बंदूक रख कर एक साथ कई निशाने लगाना चाहते थे। पहला यह कि पाकिस्तान के आतंकी हमले से भारत यानी नरेंद्र मोदी दबाव में आ जाएंगे। भारत हल्की फुल्की स्ट्राइक करेगा तो पाकिस्तान फुल फ्लेजेड हमला कर देगा। नस्र और शाहीन से एटमिक हमला करेगा। एटमी हमले से घबराकर भारत उनके (अमेरिका) के पास आएगा। युद्ध रुकवाने के लिए गुहार लगाएगा। पाकिस्तान को अमेरिका का टॉमी है, वो जब कहेगा टॉमी कूं-कूं करके बैठ जाएगा। लेकिन युद्ध रुकवाने के एवज में ट्रंप भारत से दो काम करवा लेगा। पहला काम नोबेल पीस पुरस्कार के भारत का नामिनेशन हासिल करना और दूसरा काम एफ ३५ की खरीद पर दस्तखत।

ध्यान से देखें, ऑपरेशन सिंदूर के पहले दो दिन अमेरिका ऐसे व्यवहार करता रहा जैसे कि उसे फर्क नहीं पड़ता लेकिन ट्रंप के बयानों से उनकी मंशा जाहिर होती थी, जैसे भारत-पाकिस्तान तो एक हजार साल से लड़ रहे हैं। ट्रंप का यह बयान बड़ी ही सोची समझी रणनीति के तहत दिया गया था। उन्हें ऐसा लग रहा था कि दो एक दिन में बाद भारत भागता हुआ उनकी शरण में आने ही वाला ही है।

ट्रंप नए भारत की रणनीति को समझने की भूल कर बैठे। वो समझ ही नहीं पाए कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने न्यू नॉरमल की स्टैटजी पहले से तैयार कर ली थी बस उसका ऐलान बाकी था। न अमेरिका को मालूम था और न पाकिस्तान को कि भारत की फौजे तीन सौ किलोमीटर घुस कर हमले कर सकती हैं। पाकिस्तान तो यह सोच भी नहीं सकता था कि भारत बहावलपुर और मुरीदके पर हमला कर देगा। पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि भारत ब्राह्मोस से हमला करेगा। पाकिस्तान ने यह भी नहीं सोचा उसके १३ एयरबेस और डिफेंस बेस मात्र २२ मिनट में ध्वस्त हो जाएंगे। पाकिस्तान ने यह भी नहीं सोचा कि सरगोधा और नूरखान एयरबेस एक साथ ही ठोंक दिए जाएँगे।

अमेरिका और पाकिस्तान, दोनों की सोच से बाहर की बात थी कि भारत ने पाकिस्तान में अमेरिका के सीक्रेट एटमी अड्डों को भी ठोक दिया। चीन और तुर्की की तो अभी बात ही मत पूछिए कि उनका क्या-क्या ठुका।

जैसे ही ट्रंप को पता चला कि भारत ने केवल पाकिस्तान को ही नहीं बल्कि अमेरिकी सीक्रेट अड्डों को भी ठोंक दिया है, और न्यूक्लियर इनेवल्ड ब्राह्मोस से पाकिस्तान पर हमले किए हैं तो ट्रंप की हवा निकल गई। ट्रंप ने जेडी वैंस को तुरंत मोर्च पर लगाया। क्योंकि जेडी वैंस, भारत से उड़ कर वाशिंगटन पहुंचे ही थे। प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी और जेडी वैंस की कैमिस्ट्री भी काफी मैच कर रही थी।

जेडी वैंस को मालूम हो या न हो प्रधानमंत्री को संभवतः आभास था कि ट्रंप कौन सी चाल चल रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने जेडी वैंस का फोन तब तक नहीं उठाया जब तक किराना हिल्स लॉक नहीं हुआ (हालांकि भारतीय सेना ने यह स्वीकार नहीं किया है कि किराना हिल्स पर हमला किया गया)। बाद में जब जेडी वैंस से प्रधान मंत्री मोदी ने बात की और जेडी वेंस ने कहा कि पाकिस्तान बहुत बड़ा हमला करने वाला है (बहुत बड़े हमले से मतब से यहां परमाणु हमले से था)।

ऐसा बताया जाता है कि जेडी वैंस की बातें सुनते ही पीएम मोदी के दीमाग के सारे रडार एक्टिव हो गए। उन्हें अहसास हो गया कि पाकिस्तान भोर निकलने से पहले हमला कर सकता है। उन्होंने आनन-फानन में एनएसए के साथ रक्षा मंत्री, गृहमंत्री, वित्तमंत्री, विदेश मंत्री, सभी के के सचिव और सीडीएस के साथ तीनों सेनाध्यक्षों को तलब किया। अगले ५ से १० मिनट में सभी वॉर रूम में इकट्ठे थे। पांच मिनट की ब्रीफिंग में तय हुआ कि पौ फटने से पहले पसनी, बादिन और जैकोबाबाद, तरबेला, शमसी, नूर खान, रहीम यार खान सहित १३ एयरबेस औक डिफेंस कमांड कंट्रोल बेस को ठोक दिया जाए। और अगले पांच मिनट में भारत फौजों ने अमल शुरू कर दिया। इन एयरबेस के अलावा दो एयरबेस ऐसे थे जो लॉक्‍ड तो थे मगर कागजों में कोई निशान नहीं था।

भारत के हमलों से पाकिस्तानी जनरल आसिम मुनीर और पीएम शहबाज शरीफ की पेंट पीली हो गईं। उप प्रधानमंत्री इशाक डार को डायरिया हो गया। अमेरिका सिट्टी-पिट्टी यह सुनकर गुम हो गई कि दोनों सीक्रेट एटमी अड्डों को भारत ने ठोंक दिया है। असीम मुनीर और शहबाज ने ट्रंप से कहा माई-बाप हमने तो आपके भरोसे पहलगाम करवाया था। भारत ने तो हमें कहीं का न छोड़ा। चाईनीज, टर्किश और आपके असलह-मशीनें भी राख होकर खाक में मिल गई हैं। अगर भारत को न रोका तो वो हमारा नामो-निशां मिटा देगा। रोको भारत को, कुछ भी करके रोको।
अमेरिका के सामने सवाल था कि भारत को अब हमला रोकने के लिए कैसे कहा जाए। डर यह भी था कि दुनिया असलियत न जान ले। इसलिए अमेरिका ने शहबाज से कहा कि सऊदिया को बीच में डालो। पहले सऊदिया हमसे और फिर हम और सऊदिया भारत से हमले रोकने के राजी करने की कोशिश करेंगे।

हांफते-कांपते रणनीति बनी। अमेरिका-सऊदिया का फोन दिल्ली आया। कहा गया कि पाकिस्तान आगे कुछ नहीं करेगा, उसने हमें वचन दिया है इसलिए पाकिस्तान पर हमले रोक दो, आपको हमारा वास्ता! पाकिस्तान बहुत रो रहा है, उसको बहुत चोट लग चुकी है।

भारत ने कहा, हम क्या जानें पाकिस्तान को बहुत चोट लगी है, हम क्या जानें पाकिस्तान रो रहा है। पाकिस्तान अपने मुंह से कहे तो जानें, अपने मुंह से हमले रोकने की मिन्नतें करें तो हम सोचेंगे। भारत और पाकिस्तान के बीच तो बातचीत बंद है तो फिर कम्युनिकेशन कैसे हो? इस समस्या का तत्कालिक हल यह निकला कि युद्ध के दौरान खुले रहने वाले एकमात्र सूत्र यानी मिलिट्री यानी डीजीएमओ आपस में बात करें। बस, आवाज की रफ्तार से बात पाकिस्तान पहुंची और रोशनी की रफ्तार से पाकिस्तानी डीजीएमओ का हड़बड़ाता-गिड़गिड़ाता फोन भारत के डीजीएमओ के पास आ गया।

उसके बाद की कहानी तो सबके सामने है और मालूम है। पीछे की कहानी क्या है वो कम शब्दों में बताने की कोशिश करता हूँ। ६-७ मई की रात को शुरू हुआ ऑपरेशन सिंदूर १० मई की शाम स्थगित तो हुआ, मगर ट्रंप की अना-अहंकार को गहरी चोट दे गया। ट्रंप के स्वर ६-७ मई से बिगड़ने शुरू हो गए। टैरिफ के बहाने सौदेबाजी होने लगी। ट्रंप की भारत से ‘नोबेल पीस पुरस्कार के नॉमिनेशन’ आखिरी उम्मीद उस दिन टूट गई जब प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में कहा कि दुनिया के किसी भी देश ने ऑपरेशन सिंदूर रोकने के लिए नहीं कहा। पाकिस्तान की डीजीएमओ गिड़गिड़ाया, शरण में आया तब ऑपरेशन सिंदूर सशर्त स्थगित किया गया, खत्म नहीं किया गया।

पाकिस्तान की तरह ट्रंप भी भारत से सारे मोर्चों पर हार चुके थे। वो भारत से खास तौर पर प्रधानमंत्री मोदी से अपनी हार का बदला, सारी दुनिया में हुई बेइज्जति का बदला, झूठ की पोल खुल जाने का बदला ले रहे हैं। यूक्रेनियों के मारे जाने का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। जबकि अमेरिका खुद सैकड़ों बिलियन सालाना का व्यापार रूस से कर रहा है।

झूठा शख्स हारने के बाद क्या करता है। सबसे पहले आरोप लगाता है। यही ट्रंप कर रहे हैं। ट्रंप के पास टैरिफ का हथियार बचा है। भारत, अमेरिका के सीक्रेट एटमी अड्डे तबाह कर चुका है। कई एफ-१६ राख कर चुका है, एक अवाक्स मार चुका है। डिफेंस सिस्टम गिरा चुका है। ज्योपॉलिटिकली ट्रंप की पोल खोल चुका है, ऊपर से एफ-३५ की डील को डस्टबिन में डाल चुका है। वैसे, एक बात शायद ट्रंप के सलाहकारों ने उन्हें नहीं बताई वो यह कि टैरिफ बम के धमाके से जितना नुकसान भारत को होगा उससे कहीं ज्यादा अमेरिकी जनता को भी होगा।

हमारी वोकल फॉर लोकल ढाल बन ही चुकी है। आपका क्या होगा ट्रंप जनाब-ए-आली!

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